महाराष्ट्र विधानसभा का मानसून सत्र आज से शुरू हो रहा है, और इस बार भाषा विवाद के चलते विपक्ष महायुति सरकार पर तीखा हमला करने की तैयारी में है। यह सत्र राज्य की राजनीति के लिए बेहद अहम है, क्योंकि भाषा नीति को लेकर पिछले कुछ समय से चल रही बहस अब विधानसभा में जोर पकड़ेगी। आइए, इस सत्र और विवाद को विस्तार से समझते हैं।
मानसून सत्र क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
महाराष्ट्र विधानसभा के तीन मुख्य सत्रों में से एक मानसून सत्र जून से जुलाई के बीच होता है। इस दौरान राज्य का बजट, नीतियां, और कई अहम मुद्दों पर चर्चा की जाती है। इस बार भाषा विवाद के साथ-साथ किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, और आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दे भी छाए रहने की संभावना है। यह सत्र सरकार और विपक्ष दोनों के लिए अपनी बात रखने का बड़ा मंच है।
भाषा विवाद की जड़ क्या है?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक नई भाषा नीति पेश की, जिसमें स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का प्रस्ताव था। सरकार का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लिया गया है, जिसका मकसद छात्रों को बहुभाषी बनाना है। लेकिन विपक्ष ने इसे "मराठी भाषा और संस्कृति पर हमला" करार दिया। उनका आरोप है कि यह नीति मराठी को कमजोर करेगी और राज्य में हिंदी को थोपने की कोशिश है।
महाराष्ट्र में भाषा का मुद्दा हमेशा संवेदनशील रहा है। मराठी यहाँ की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, और इसे कमजोर करने वाली किसी भी नीति का विरोध स्वाभाविक है।
विपक्ष का हमला: क्या कह रहे हैं नेता?
विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट), इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए तैयार हैं। वे इस नीति को "मराठी विरोधी" और "असंवैधानिक" बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह नीति राज्य की भाषाई विविधता को नजरअंदाज करती है और हिंदी को थोपने की साजिश है।
शिवसेना (उबाठा) नेता संजय राउत ने कहा, हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र पर इसे जबरन थोपना स्वीकार नहीं करेंगे। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड ने भी सरकार पर मराठी विरोधी एजेंडा चलाने का आरोप लगाया। विपक्ष यह भी दावा करता है कि पहले की महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार ने कभी ऐसी नीति को मंजूरी नहीं दी थी।
सरकार का जवाब: क्या है उनका पक्ष?
महायुति सरकार (BJP, शिवसेना-एकनाथ शिंदे गुट, और NCP-अजित पवार गुट) ने इस नीति का बचाव किया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह नीति NEP का हिस्सा है और इसका मकसद छात्रों को अधिक भाषाओं का ज्ञान देना है, न कि मराठी को कमजोर करना। उन्होंने स्पष्ट किया कि मराठी अनिवार्य रहेगी और हिंदी सिर्फ वैकल्पिक तीसरी भाषा होगी।
फडणवीस ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री काल में भी त्रि-भाषा नीति पर सहमति बनी थी। हालांकि, विरोध बढ़ने पर सरकार ने इस नीति से जुड़े दो सरकारी आदेश वापस ले लिए और शिक्षाविद् डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई, जो इस पर सुझाव देगी।
सत्र में और क्या होगा?
भाषा विवाद के अलावा, सत्र में किसानों की आत्महत्या, बेरोजगारी, और आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दे भी उठेंगे। विपक्ष इन सवालों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करेगा, जबकि सरकार अपनी नीतियों और कामकाज का बचाव करेगी।
यह सत्र महाराष्ट्र की राजनीति के लिए निर्णायक हो सकता है। भाषा विवाद पर विपक्ष का हमला और सरकार का जवाब सत्र की मुख्य बात होगी। नीति वापस लेने से विवाद कुछ शांत हो सकता है, लेकिन विपक्ष इसे पूरी तरह छोड़ने के मूड में नहीं दिखता। आने वाले दिन बताएंगे कि यह बहस कहाँ तक जाती है और इसका राज्य की जनता पर क्या असर पड़ता है।