महाराष्ट्र में भाषा को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। फडणवीस सरकार के एक हालिया फैसले ने राजनीतिक और समाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है। सरकार ने स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसके बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने तीखी बयान दिया। ठाकरे ने कहा, "हिंदी सबको आती है। देश में एक ही भाषा होनी चाहिए।" उनके इस बयान ने भाषा और राष्ट्रीय एकता के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है।
विवाद की शुरुआत
महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में स्कूली पाठ्यक्रम में भाषा नीति को लेकर एक समीक्षा की थी। इस दौरान यह सुझाव आया था कि मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाए। लेकिन फडणवीस सरकार ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि मराठी भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। सरकार का तर्क है कि स्थानीय भाषा को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता है और अंग्रेजी पहले से ही वैश्विक संवाद के लिए जरूरी है।
इस फैसले के बाद विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा है। उद्धव ठाकरे ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय एकता से जोड़ते हुए कहा, "हिंदी देश की संपर्क भाषा है। यह हर भारतीय को जोड़ती है। इसे तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने से मराठी की गरिमा कम नहीं होगी। हमें एक ऐसी भाषा चाहिए, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधे।" ठाकरे ने यह भी कहा कि हिंदी को नजरअंदाज करना देश की एकता के खिलाफ है।
दोनों पक्षों में बहस
शिक्षा मंत्री दीपक केसकर ने कहा, "हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी को प्राथमिकता देना जरूरी है। बच्चे पहले से ही मराठी और अंग्रेजी पढ़ रहे हैं। तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को जोड़ने से बच्चों पर बोझ बढ़ेगा।" सरकार ने यह भी तर्क दिया कि हिंदी पहले से ही अनौपचारिक रूप से कई स्कूलों में पढ़ाई जाती है, इसलिए इसे अनिवार्य करने की जरूरत नहीं है।
दूसरी ओर, विपक्ष और भाषा विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करना राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा। मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रमेश पाटिल ने कहा, "हिंदी देश की सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है। इसे स्कूलों में पढ़ाने से न केवल बच्चों का भाषाई ज्ञान बढ़ेगा, बल्कि वे देश के अन्य हिस्सों से बेहतर तरीके से जुड़ सकेंगे।"
जनता की राय
इस मुद्दे पर जनता की राय भी बंटी हुई है। मुंबई के एक स्कूल शिक्षक संजय पवार का कहना है, "मराठी हमारी पहचान है, लेकिन हिंदी भी उतनी ही जरूरी है। आज के समय में बच्चे कई भाषाएं सीखना चाहते हैं। हिंदी को शामिल करने से उनके करियर में भी मदद मिलेगी।" वहीं, पुणे की शुभांगी कुलकर्णी का कहना है, "मराठी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हिंदी तो बच्चे टीवी और फिल्मों से वैसे ही सीख लेते हैं।"
राजनीतिक रंग लेता विवाद
यह मुद्दा अब राजनीतिक रंग ले चुका है। शिवसेना (यूबीटी) के अलावा कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने भी सरकार के फैसले की आलोचना की है। कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा, "यह फैसला महाराष्ट्र को देश से अलग-थलग करने की कोशिश है। हिंदी को नजरअंदाज करना राष्ट्रीय एकता पर हमला है।" दूसरी ओर, बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस मुद्दे को क्षेत्रीय अस्मिता से जोड़ते हुए कहा कि मराठी भाषा की रक्षा करना उनकी प्राथमिकता है।
क्या है आगे का रास्ता?
भाषा विवाद कोई नया मुद्दा नहीं है। भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा को लेकर समय-समय पर बहस होती रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे का हल निकालने के लिए सरकार और विपक्ष को एक साथ बैठकर बात करनी होगी। भाषा विशेषज्ञ डॉ. अनिता शर्मा का सुझाव है, "हमें भाषाओं को गलत के बजाय सहयोग के रूप में देखना चाहिए। मराठी, हिंदी और अंग्रेजी, तीनों को पाठ्यक्रम में जगह दी जा सकती है, ताकि बच्चों को सभी का लाभ मिले।"
महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा का दर्जा न देने का फैसला एक बार फिर भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के सवालों को सामने लाया है। उद्धव ठाकरे का बयान इस बहस को और हवा दे रहा है। अब देखना यह है कि क्या सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी या यह विवाद और गहराएगा। फिलहाल, यह मुद्दा महाराष्ट्र की सियासत में गर्म बना हुआ है और इसका असर आने वाले दिनों में और भी देखने को मिल सकता।