ईरान और इजरायल के बीच चल रहा तनाव अब और गहरा हो गया है। इस जंग में अमेरिका भी कूद पड़ा है, जिसने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले करके स्थिति को और खराब कर दिया है। इस युद्ध का असर अब भारत जैसे देशों पर भी दिखने लगा है, खासकर गैस (LPG) की कमी और कीमतों पर। भारत अपनी रसोई गैस की जरूरत का बड़ा हिस्सा पश्चिम एशिया के देशों से आयात करता है, और इस जंग की वजह से गैसों में रुकावट का खतरा मंडरा रहा है।
होर्मुज जलडमरूमध्य पर संकट
ईरान ने हाल ही में होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) को बंद करने की धमकी दी है। स्ट्रेट ऑफ हॉर्मिज तेल और गैस व्यापार का एक अहम रास्ता है, जहां से करीब 20 फीसदी तेल और गैस की सप्लाई होती है। भारत अपनी रसोई गैस का लगभग 66 फीसदी हिस्सा सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से मंगवाता है, जो इसी रास्ते से आता है। अगर यह रास्ता बंद हुआ, तो गैस में भारी दिक्कत हो सकती है, जिससे कीमतें आसमान छू सकती हैं।
भारत की रसोई पर मार
पिछले कुछ सालों में भारत में रसोई गैस का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। उज्ज्वला योजना जैसी सरकारी योजनाओं की वजह से अब करीब 33 करोड़ घरों में एलपीजी सिलेंडर पहुंच चुका है। लेकिन अगर पश्चिम एशिया में जंग लंबी चली, तो गैस की कीमतों में बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। लोगों का कहना है कि इससे आम आदमी की जेब पर भारी बोझ पड़ सकता है। पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे परिवारों के लिए यह एक और मुसीबत बन सकती है।
तेल की कीमतों में भी उछाल
इस जंग का असर सिर्फ रसोई गैस तक सीमित नहीं है। कच्चे तेल की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही हैं। हाल ही में ब्रेंट क्रूड की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है,भारत अपनी तेल जरूरतों का 85 फीसदी हिस्सा आयात करता है, और कीमतों में यह उछाल पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा सकता है। इससे न सिर्फ ट्रांसपोर्ट महंगा होगा, बल्कि रोजमर्रा की चीजों की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
भारत की रणनीति
इस संकट से निपटने के लिए भारत सरकार कई कदम उठा रही है। पिछले कुछ सालों में भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद बढ़ाई है, जो इस समय भारत की कुल तेल जरूरत का 34-35 फीसदी हिस्सा पूरा कर रहा है। जून में रूस से तेल आयात पश्चिम एशिया के देशों से भी ज्यादा रहा है। सरकार होर्मुज जलडमरूमध्य की स्थिति पर भी नजर रख रही है और अन्य रास्तों की तलाश में जुटी है। हालांकि, लोगों का मानना है कि अगर जंग और भड़की, तो इन उपायों से भी पूरी तरह राहत मिलना मुश्किल होगा।
इस जंग ने भारत के सामने एक चुनौती खड़ी कर दी है। भारत के ईरान और इजरायल दोनों के साथ अच्छे व्यापारिक और रिश्ते हैं। ईरान के साथ चाबहार पोर्ट जैसी अहम परियोजना जुड़ी है, जो भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से जोड़ता है। वहीं, इजरायल भारत का बड़ा रक्षा साझेदार है। अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ भी भारत के रिश्ते मजबूत हैं। ऐसे में भारत को सभी पक्षों के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती है।
आम आदमी पर असर
इस जंग का सबसे बड़ा असर आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला है। अगर रसोई गैस और पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ीं, तो इसका सीधा असर महंगाई पर होगा। खाद्य पदार्थों, ट्रांसपोर्ट और अन्य जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं। लोगों का मानना है कि अगर गैस की कीमतें 1000 रुपये प्रति सिलेंडर के पार गईं, तो ग्रामीण परिवारों के लिए इसे खरीदनानमुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा, रुपये पर भी दबाव बढ़ सकता है। तेल आयात के लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे, जिससे रुपये की कीमत गिर सकती है। इसका असर आयातित सामानों, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और दवाओं, की कीमतों पर भी पड़ेगा।
इस समय पूरी दुनिया की नजर इस जंग पर टिकी है। क्या यह तनाव बातचीत से सुलझेगा या और गहराएगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि इसका असर भारत की हर रसोई तक पहुंच सकता है।