हापुड़, 19 जून 2025: उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के सिखेड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक बेहद लापरवाही घटना ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को सामने ला दिया। यहां दो गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के दौरान बिजली चली गई, जिसके चलते अंधेरे में मोबाइल फोन की टॉर्च की रोशनी में प्रसव कराया गया। लेकिन हालात तब और बिगड़ गए जब ऑक्सीजन की कमी के कारण दोनों नवजात बच्चों की मौत हो गई। इस घटना ने न सिर्फ परिजनों को सदमे में डाल दिया, बल्कि पूरे इलाके में गुस्से की लहर दौड़ गई है।

क्या हुआ उस रात?

परिजनों ने बताया कि दोनों महिलाओं को प्रसव पीड़ा शुरू होने पर बुधवार देर रात स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। डिलीवरी की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ देर बाद ही बिजली गुल हो गई। अस्पताल में न तो जेनरेटर था और न ही कोई बैकअप व्यवस्था। मजबूरी में नर्सों और स्टाफ ने अपने मोबाइल फोन की टॉर्च का सहारा लिया। लेकिन सबसे बड़ी लापरवाही तब सामने आई जब नवजात बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं था। एक परिजन ने गुस्से में कहा, "हम चिल्लाते रहे, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। 45 मिनट तक ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं हुआ। हमारे बच्चे हमारी आंखों के सामने तड़पकर मर गए।"


परिजनों का गुस्सा, अस्पताल में हंगामा

घटना की खबर फैलते ही परिजन और स्थानीय लोग स्वास्थ्य केंद्र पर जमा हो गए। गुस्साए लोगों ने अस्पताल प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की और डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाया। एक मृतक बच्चे की मां के भाई ने रोते हुए कहा, "हम गरीब लोग हैं, सरकारी अस्पताल पर भरोसा करके आए थे। लेकिन यहां तो जान ले ली गई। अगर बिजली और ऑक्सीजन का इंतजाम होता तो हमारे बच्चे आज जिंदा होते।" भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।


स्वास्थ्य केंद्र की बदहाल स्थिति

स्थानीय लोगों का कहना है कि सिखेड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत सालों से खराब है। यहां न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं, न ही जरूरी उपकरण। बिजली कटौती की समस्या आम है, लेकिन जेनरेटर जैसी बुनियादी सुविधा भी नहीं है। एक ग्रामीण रामपाल ने बताया, "यहां आए दिन मरीजों को दिक्कत होती है। दवाइयां तक बाहर से मंगवानी पड़ती हैं। सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन गांवों के अस्पतालों की सुध लेने वाला कोई नहीं।"


जांच के आदेश, लेकिन क्या होगा इंसाफ?

जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत जांच के आदेश दे दिए हैं। एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है, जो 48 घंटे के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. सुनील त्यागी ने कहा, "हमें इस दुखद घटना की जानकारी मिली है। हम पूरे मामले की जांच कर रहे हैं। अगर कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।" हापुड़ पुलिस ने भी परिजनों की तहरीर पर मामला दर्ज कर लिया है और अस्पताल स्टाफ से पूछताछ शुरू कर दी है।


स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल

यह घटना एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। ग्रामीण इलाकों में अस्पतालों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव, डॉक्टरों की कमी और लापरवाही के चलते आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं। लोग पूछ रहे हैं कि जब सरकार "सबका साथ, सबका विकास" और "विकसित भारत" की बात करती है, तो गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी दयनीय क्यों हैं? क्या गरीबों की जान की कोई कीमत नहीं?


परिजनों की मांग, सख्त कार्रवाई

परिजनों और स्थानीय लोगों ने दोषी कर्मचारियों को तुरंत निलंबित करने और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग की है। साथ ही, उन्होंने स्वास्थ्य केंद्र में बुनियादी सुविधाएं जैसे जेनरेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर और प्रशिक्षित स्टाफ की व्यवस्था करने की गुहार लगाई है। एक परिजन ने कहा, "हमारा दुख कोई वापस नहीं ला सकता, लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी और के साथ ऐसा हो।"

इस घटना ने न सिर्फ हापुड़, बल्कि पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है। अब सबकी नजरें जांच कमेटी की रिपोर्ट और प्रशासन के कदमों पर टिकी हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार सिर्फ कागजी कार्रवाई न हो, बल्कि दोषियों को सजा मिले और स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार हो। लेकिन सवाल वही है कि क्या यह मामला भी समय के साथ ठंडा पड़ जाएगा, या वाकई में कुछ बदलेगा?
फिलहाल, दो परिवार अपने नवजातों को खोने का गम मना रहे हैं, और समाज के सामने यह सवाल खड़ा है कि आखिर कब तक लापरवाही की कीमत मासूमों की जान से चुकानी पड़ेगी?