महाराष्ट्र के अहमदनगर (अब अहिल्यानगर) जिले में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर, जो भगवान शनिदेव के लिए देशभर में प्रसिद्ध है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मंदिर प्रशासन ने 167 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है, जिनमें से 114 मुस्लिम समुदाय से हैं। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि यह फैसला कर्मचारियों के खराब प्रदर्शन और लंबी अनुपस्थिति के कारण लिया गया है। लेकिन इस कार्रवाई से पहले सकल हिंदू समाज नामक संगठन द्वारा गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाने की मांग ने इस मामले को विवादास्पद बना दिया है। आइए, इस पूरे मामले को समझते हैं।

क्या हुआ शनि शिंगणापुर मंदिर में?

शनि शिंगणापुर मंदिर, जो अपनी अनोखी परंपराओं और शनिदेव की स्वयंभू मूर्ति के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ समय से चर्चा में है। मंदिर ट्रस्ट, जिसका नाम श्री शनैश्चर देवस्थान है, ने 8 और 13 जून को दो चरणों में 167 कर्मचारियों को नौकरी से हटा दिया। ट्रस्ट के मुताबिक, इन कर्मचारियों में से 114 मुस्लिम थे, जो मंदिर के विभिन्न विभागों जैसे कृषि, कचरा प्रबंधन और शिक्षा में काम कर रहे थे। कुछ कर्मचारी पिछले 2 से 10 साल से मंदिर प्रशासन के साथ जुड़े हुए थे।
ट्रस्ट के सीईओ गोरक्षनाथ दरंदले और ट्रस्टी अप्पासाहेब शेटे ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई पूरी तरह से अनुशासनात्मक आधार पर की गई है। उन्होंने कहा कि कई कर्मचारी लंबे समय से बिना सूचना के अनुपस्थित थे, काम में लापरवाही बरत रहे थे और प्रशासनिक नियमों का पालन नहीं कर रहे थे। ट्रस्ट ने यह भी बताया कि इन कर्मचारियों को पहले चेतावनी दी गई थी और कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन सुधार न होने के कारण यह कदम उठाना पड़ा।


सकल हिंदू समाज की मांग और विवाद की शुरुआत

इस बर्खास्तगी से ठीक पहले, मई 2025 में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें दावा किया गया कि मंदिर परिसर में गैर-हिंदू कर्मचारी, विशेष रूप से मुस्लिम, पेंटिंग और बांधकाम जैसे काम कर रहे थे। इस वीडियो के बाद सकल हिंदू समाज और महाराष्ट्र मंदिर महासंघ जैसे संगठनों ने मंदिर में गैर-हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति पर सवाल उठाए। इन संगठनों का कहना था कि मंदिर एक हिंदू आस्था का केंद्र है, और यहां केवल हिंदू कर्मचारियों को ही काम करना चाहिए।

भाजपा के आध्यात्मिक समन्वय मोर्चा के प्रमुख आचार्य तुषार भोसले ने इस मुद्दे को और हवा दी। उन्होंने सार्वजनिक रूप से मांग की कि मंदिर में गैर-हिंदू कर्मचारियों को हटाया जाए और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी। भोसले ने बर्खास्तगी को “हिंदू समाज की एकता की जीत” करार दिया और कहा कि यह फैसला उनके संगठन के दबाव के कारण लिया गया।


क्या वाकई में भेदभाव हुआ?

मंदिर ट्रस्ट ने बार-बार कहा है कि यह कार्रवाई धर्म या जाति के आधार पर नहीं, बल्कि कर्मचारियों के प्रदर्शन और अनुशासनहीनता के आधार पर की गई है। ट्रस्ट का दावा है कि 2400 से ज्यादा कर्मचारी उनके साथ काम करते हैं, और जिन्हें निकाला गया, उनमें विभिन्न धर्मों के लोग शामिल हैं। हालांकि, 167 में से 114 कर्मचारियों का मुस्लिम होना इस मामले को संवेदनशील बनाता है।

विपक्षी दलों और कुछ सामाजिक संगठनों ने इस कार्रवाई को धार्मिक भेदभाव करार दिया है। उनका कहना है कि अगर अनुशासनहीनता का मुद्दा था, तो व्यक्तिगत आधार पर जांच होनी चाहिए थी, न कि सामूहिक बर्खास्तगी। कुछ कार्यकर्ताओं का यह भी तर्क है कि यह फैसला हिंदू संगठनों के दबाव में लिया गया, जो धार्मिक आधार पर रोजगार को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।


मंदिर प्रशासन का पक्ष

मंदिर ट्रस्ट ने इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य मंदिर की गरिमा और अनुशासन बनाए रखना है। ट्रस्टी अप्पासाहेब शेटे ने कहा, “हमने किसी को धर्म के आधार पर नहीं हटाया। कई कर्मचारी महीनों से काम पर नहीं आ रहे थे, और हमें उनके खिलाफ शिकायतें मिल रही थीं। यह फैसला प्रशासनिक जरूरत थी।” ट्रस्ट ने यह भी बताया कि निकाले गए कर्मचारियों में से 99 पिछले पांच महीने से अनुपस्थित थे, और उनकी सैलरी भी रोकी गई थी।


सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया

इस घटना ने महाराष्ट्र में धार्मिक आधार पर रोजगार और मंदिरों में समावेशिता को लेकर बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे हिंदू आस्था की रक्षा के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे भेदभाव और धार्मिक कट्टरता का उदाहरण मानते हैं। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर दो धड़े बन गए हैं। कुछ यूजर्स का कहना है कि मंदिर में काम करने वाले कर्मचारियों का चयन उनके धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर होना चाहिए। वहीं, कुछ लोग सकल हिंदू समाज की मांग का समर्थन करते हुए कहते हैं कि धार्मिक स्थलों पर केवल उसी धर्म के लोग काम करें, जिससे वह स्थान जुड़ा है।


शनि शिंगणापुर मंदिर की खासियत

शनि शिंगणापुर मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है। यह मंदिर शनिदेव को समर्पित है, और यहां की स्वयंभू मूर्ति काले पत्थर की है, जो खुले आसमान के नीचे स्थापित है। मंदिर के आसपास का गांव भी अनोखा है, जहां घरों में दरवाजे नहीं होते, क्योंकि लोगों का मानना है कि शनिदेव स्वयं उनकी रक्षा करते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। पहले इस मंदिर में महिलाओं को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, लेकिन 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद यह परंपरा बदल गई।