कांग्रेस के नेता और विपक्ष के प्रमुख चेहरों में से एक राहुल गांधी ने शनिवार को चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि जब देश की जनता और विपक्षी दल आयोग से जवाब की उम्मीद कर रहे हैं, तब वह सबूत मिटाने में जुटा है। यह बयान उस समय आया है, जब हाल ही में चुनाव आयोग ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि चुनाव प्रक्रिया से जुड़े सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग और वीडियो रिकॉर्डिंग को 45 दिन बाद नष्ट कर दिया जाए। इस निर्देश ने न केवल विपक्षी दलों को बल्कि आम जनता को भी चौंका दिया है, और एक बार फिर देश में चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं।

राहुल गांधी का बयान

शनिवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा, "चुनाव आयोग देश के लोकतंत्र की रीढ़ है। यह वह संस्था है, जिस पर 140 करोड़ लोगों का भरोसा टिका है। लेकिन आज यह संस्था उस भरोसे को तोड़ रही है। जब लोग सवाल पूछते हैं, जब विपक्ष सबूत मांगता है, तो आयोग जवाब देने की बजाय सबूत मिटाने में जुट जाता है। यह ना सिर्फ संदेह पैदा करता है, बल्कि हमारे लोकतंत्र की नींव को कमजोर करता है।"

उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर आयोग ऐसा क्यों कर रहा है। "अगर सब कुछ सही और है, तो सीसीटीवी फुटेज और वीडियो रिकॉर्डिंग को नष्ट करने की क्या जरूरत है? ये फुटेज ना सिर्फ चुनावी प्रक्रिया की निगरानी के लिए जरूरी हैं, बल्कि अगर कोई विवाद होता है, तो इन्हीं के आधार पर जांच हो सकती है। लेकिन अगर इन्हें 45 दिन बाद मिटा दिया जाएगा, तो फिर सच को सामने लाने का क्या रास्ता बचेगा।


चुनाव आयोग का निर्देश: क्या है मामला?

चुनाव आयोग के इस निर्देश की खबर ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। आयोग ने अपने सभी क्षेत्रीय अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि मतदान और मतगणना के दौरान रिकॉर्ड किए गए सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग डेटा और अन्य वीडियो रिकॉर्डिंग को 45 दिन बाद नष्ट कर दिया जाए। यह निर्देश उस समय सामने आया है, जब हाल के चुनावों में कई जगहों पर मतगणना की प्रक्रिया और मतदान केंद्रों की व्यवस्था को लेकर सवाल उठे थे। विपक्षी दलों ने कई बार आयोग से इन फुटेज की मांग की थी, ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की जांच हो सके।

चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक रूटीन प्रक्रिया है। एक बड़े अधिकारी, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की, ने कहा, "हर बार सारा डेटा लंबे समय तक स्टोर करना संभव नहीं होता। हमारे पास सीमित संसाधन हैं, और इसलिए पुराने डेटा को हटाने की नीति बनाई गई है।" लेकिन विपक्ष इसे रूटीन मानने को तैयार नहीं है। उनका कहना है कि अगर यह सामान्य प्रक्रिया है, तो इसे इतने गुपचुप तरीके से क्यों लागू किया जा रहा है, और इसकी जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की गई?


विपक्ष का गुस्सा: 'यह लोकतंत्र के साथ खिलवाड़'

राहुल गांधी के बयान के बाद विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, "चुनाव आयोग का यह फैसला बेहद खतरनाक है। अगर फुटेज नष्ट हो जाएंगे, तो हम कैसे सुनिश्चित करेंगे कि हमारे वोट की गिनती सही हुई? यह लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है।" उन्होंने मांग की कि आयोग इस निर्देश को तुरंत वापस ले और सभी फुटेज को कम से कम छह महीने तक सुरक्षित रखे।

यह पहली बार नहीं है, जब चुनाव आयोग पर सवाल उठे हैं। पिछले कुछ सालों में कई बार विपक्षी दलों ने आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लेकर विवाद हुआ था, जिसमें विपक्ष ने मांग की थी कि सभी वोटों का वीवीपैट स्लिप से मिलान किया जाए। उस समय भी आयोग के रवैये पर सवाल उठे थे।

इसी तरह, 2024 के लोकसभा चुनावों में कई जगहों पर मतगणना की प्रक्रिया को लेकर शिकायतें आई थीं। कुछ जगहों पर विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि मतगणना में देरी और गड़बड़ी की गई। इन शिकायतों की जांच के लिए विपक्ष ने सीसीटीवी फुटेज की मांग की थी, लेकिन कई मामलों में उन्हें ये फुटेज उपलब्ध नहीं कराए गए। अब आयोग का यह नया निर्देश उस घाव पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है।