आज सुबह जब पूरी दुनिया मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव को लेकर चिंतित थी, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान से फोन पर बात की। इस बातचीत का मकसद था क्षेत्र में हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा करना और शांति बहाल करने की दिशा में कदम उठाने की अपील करना। पीएम मोदी ने साफ तौर पर कहा कि मौजूदा हालात में तनाव कम करना, बातचीत और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है।

क्या है पूरा मामला?

हाल ही में मध्य पूर्व में तनाव उस वक्त और बढ़ गया जब अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों- नातांज, इस्फहान और फोर्डो पर हवाई हमले किए। ये ठिकाने ईरान के परमाणु कार्यक्रम का हिस्सा हैं, जिसे ईरान हमेशा से शांतिपूर्ण बताता रहा है। इन हमलों ने पहले से ही इजरायल और ईरान के बीच चल रही तनातनी को और गंभीर कर दिया। अमेरिका के इस कदम के बाद ईरान ने जवाबी हमले किए, जिसमें इजरायल के तेल अवीव और हाइफा जैसे शहरों को निशाना बनाया गया। इन हमलों में दर्जनों लोग घायल हुए और क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल और गहरा गया।

इसी बीच, पीएम मोदी ने तुरंत कूटनीतिक रास्ता अपनाते हुए ईरान के राष्ट्रपति से संपर्क किया। यह बातचीत ऐसे समय हुई जब संयुक्त राष्ट्र और कई अन्य देश भी इस बढ़ते संकट को लेकर चिंता जता रहे थे। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इन हमलों को "खतरनाक कदम" करार देते हुए सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की थी।


पीएम मोदी ने क्या कहा?

प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी बातचीत के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने लिखा, "ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान से बात हुई। हमने मौजूदा हालात पर विस्तार से चर्चा की। हाल के तनाव को लेकर गहरी चिंता जताई। मैंने तनाव कम करने, बातचीत और कूटनीति के रास्ते को अपनाने की अपील दोहराई ताकि क्षेत्र में जल्द से जल्द शांति, सुरक्षा और स्थिरता बहाल हो सके।"
सूत्रों के मुताबिक, इस बातचीत में ईरान के राष्ट्रपति ने पीएम मोदी को क्षेत्र की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने भारत को एक दोस्त और क्षेत्रीय शांति के लिए साझेदार देश बताया। पेजेशकियान ने भी तनाव कम करने और बातचीत के रास्ते पर जोर दिया। उन्होंने भारत की इस पहल के लिए पीएम मोदी का शुक्रिया अदा किया।


भारत की भूमिका क्यों अहम?

भारत का इस मामले में कदम उठाना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत का ईरान और इजरायल दोनों के साथ अच्छा रिश्ता है। भारत ने हमेशा मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता की वकालत की है। इसके अलावा, भारत का चाबहार बंदरगाह जैसे प्रोजेक्ट में ईरान के साथ गहरा सहयोग है, जो क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी के लिए अहम है। दूसरी ओर, भारत और इजरायल के बीच रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में मजबूत साझेदारी है। ऐसे में भारत की यह कोशिश दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर लाने में मददगार हो सकती है।


वैश्विक प्रतिक्रियाएं

इस पूरे घटनाक्रम पर दुनिया के कई देशों ने अपनी चिंता जताई है। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने भी तनाव कम करने और कूटनीति को बढ़ावा देने की बात कही है। रूस ने अमेरिका के हमलों की निंदा करते हुए इसे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बताया। वहीं, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों ने भी इन हमलों को गैरकानूनी करार देते हुए तनाव कम करने की अपील की।


भारत की विदेश नीति

पीएम मोदी की यह पहल भारत की उस विदेश नीति को दर्शाती है, जिसमें वैश्विक मंच पर शांति और संवाद को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन मध्य पूर्व में मौजूदा स्थिति इतनी जटिल है कि एक फोन कॉल से तुरंत समाधान निकलना मुश्किल है। फिर भी, भारत की यह कोशिश अन्य देशों को भी कूटनीति के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकती है।
फिलहाल, पूरी दुनिया की नजर इस बात पर है कि क्या ईरान और इजरायल के बीच यह तनाव और बढ़ेगा या फिर बातचीत का कोई रास्ता निकलेगा। पीएम मोदी की इस पहल ने एक बार फिर भारत को वैश्विक शांति के लिए एक जिम्मेदार देश के तौर पर पेश किया है।