कर्नाटक के मलै महादेश्वर हिल्स (M.M Hills) वन्यजीव अभयारण्य में 26 जून को एक मादा बाघ और उसके चार शावकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है। यह घटना कर्नाटक के लिए अब तक की सबसे बड़ी एकल-दिवसीय बाघ मृत्यु की घटना मानी जा रही है। प्रारंभिक जांच में जहर देने की आशंका जताई जा रही है, और इस घटना ने वन विभाग की कार्यप्रणाली, कर्मचारियों के बकाया वेतन और निगरानी में कमी जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर किया है।


क्या है मौत के पीछे का रहस्य?

हूग्याम रेंज के मीन्याम इलाके में वन कर्मियों ने सुबह की गश्त के दौरान पांच बाघों के शव देखे। इनमें एक मादा बाघ और उसके चार शावक शामिल थे। पास में एक गाय का शव भी मिला, जिसके बारे में माना जा रहा है कि इसे जहर देकर बाघों को मारने के लिए इस्तेमाल किया गया। 

वन अधिकारियों के मुताबिक, मादा बाघ ने कुछ दिन पहले इस गाय को मारा था, और संभवतः ग्रामीणों ने बदले की भावना से गाय के शव में जहर मिला दिया। इस घटना ने मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीर समस्या को एक बार फिर सामने ला दिया है।

कर्नाटक के वन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण मंत्री Eshwar B Khandre ने इस घटना को "बेहद दुखद और परेशान करने वाला" बताया है। उन्होंने तत्काल प्रभाव से एक उच्च-स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं, जिसकी अगुवाई प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) करेंगे। मंत्री ने कहा, "अगर वन कर्मियों की लापरवाही या जहर, बिजली का करंट या कोई अन्य कारण सामने आता है, तो जिम्मेदार लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे।" जांच समिति को तीन दिन के भीतर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है।


जहर की आशंका और जांच

मुख्य वन संरक्षक (CCF) टी. हीरालाल ने पुष्टि की है कि प्रारंभिक जांच में जहर से मौत की आशंका सबसे मजबूत है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है, जो इस बात की पुष्टि करेगी कि बाघों की मौत का कारण वाकई जहर था या कुछ और। वन विभाग और पुलिस ने संयुक्त रूप से उस गाय के मालिक की तलाश शुरू कर दी है, जिसके शव में जहर मिलाए जाने की आशंका है। स्थानीय चरवाहों और ग्रामीणों से पूछताछ की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस सुराग नहीं मिला है।


वन कर्मियों के बकाया वेतन का मुद्दा

इस घटना ने वन कर्मियों के बकाया वेतन के मुद्दे को भी सुर्खियों में ला दिया है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का दावा है कि पिछले तीन महीनों से वन रक्षकों को वेतन नहीं मिला है, जिसके कारण निगरानी और गश्त में कमी आई है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वेतन की कमी के चलते कर्मचारियों का मनोबल टूटा हुआ है, और इससे अभयारण्य में अनधिकृत प्रवेश और अवैध गतिविधियों को रोकने में मुश्किलें आ रही हैं। एक स्थानीय संरक्षण एनजीओ के प्रवक्ता ने कहा, "अगर एक अभयारण्य में एक मादा बाघ और उसके चार शावक मर सकते हैं, तो यह हमारी संरक्षण व्यवस्था पर सवाल उठाता है।"


कर्नाटक में बाघ संरक्षण की स्थिति

कर्नाटक में 563 बाघों की आबादी के साथ यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बाघों वाला राज्य है, मध्य प्रदेश के बाद। राज्य ने बाघ संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति की है, और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कई कदम उठाए गए हैं। लेकिन इस घटना ने कर्नाटक के बाघ संरक्षण मॉडल पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष, खासकर दक्षिणी कर्नाटक में, एक बड़ी चुनौती बन गया है। पिछले पांच वर्षों में इस तरह के संघर्षों में 183% की वृद्धि हुई है, जिसमें बाघ, तेंदुए और हाथी मुख्य रूप से शामिल हैं।


मानव-वन्यजीव संघर्ष की जड़

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं मानव-वन्यजीव संघर्ष का परिणाम हैं। एम.एम. हिल्स जैसे इलाकों में ग्रामीणों और वन्यजीवों के बीच तनाव बढ़ रहा है। कई बार बाघ या तेंदुए ग्रामीणों के मवेशियों को मार देते हैं, जिसके बाद गुस्साए ग्रामीण बदले की कार्रवाई करते हैं। इस मामले में भी माना जा रहा है कि मादा बाघ द्वारा गाय को मारने के बाद कुछ ग्रामीणों ने जहर का इस्तेमाल किया।
वन्यजीव संरक्षणकर्ता गिरीधर कुलकर्णी ने बताया, "हमें यह जांचना होगा कि क्या इस इलाके में पशुधन या फसलों को नुकसान हुआ था, और अगर हुआ था, तो क्या प्रभावित लोगों को समय पर मुआवजा मिला।" उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि वन विभाग का ध्यान सफारी और पर्यटन को बढ़ावा देने जैसे गैर-जरूरी क्षेत्रों पर क्यों केंद्रित है, जबकि बुनियादी संरक्षण उपायों में कमी बनी हुई है।