इजरायल और ईरान के बीच पिछले कुछ हफ्तों से चल रहे तनावपूर्ण सैन्य संघर्ष में एक नया मोड़ आया है। इजरायली मीडिया के हवाले से खबर है कि इजरायल ने ईरान को युद्ध खत्म करने के लिए एक संदेश भेजा है। यह कदम मध्य पूर्व में बढ़ती अस्थिरता और दोनों देशों के बीच बढ़ते हमलों के बाद उठाया गया है। हालांकि, ईरान की ओर से इस संदेश का जवाब कुछ और ही कहानी बयां करता है।

क्या है पूरा मामला?

13 जून 2025 को इजरायली वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने ईरान के सैन्य ठिकानों और कथित परमाणु सुविधाओं पर हमला किया था। इस हमले में ईरान के कई सैन्य जनरल और परमाणु वैज्ञानिकों के मारे जाने की खबरें आईं। जवाब में, ईरान ने भी इजरायल पर सैकड़ों बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिससे तेल अवीव और बीरशेवा जैसे शहरों में भारी नुकसान हुआ। खास तौर पर बीरशेवा के सोरोका मेडिकल सेंटर पर हुए हमले ने इजरायल को झकझोर दिया।

इसके बाद दोनों देशों के बीच हमले और जवाबी हमले का सिलसिला तेज हो गया। अमेरिका ने भी इस बीच ईरान के फोर्डो, नटांज और इस्फहान परमाणु केंद्रों पर हमले किए, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। इन हमलों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भारी क्षति पहुंची, लेकिन ईरान ने इसे युद्ध का ऐलान बताते हुए इजरायल और अमेरिका के खिलाफ और सख्त रुख अपनाया।


इजरायल का शांति संदेश

इजरायली अखबार The Times of Israel और Channel 12 के अनुसार, इजरायल ने हाल ही में एक तीसरे पक्ष के जरिए ईरान को संदेश भेजा कि वह युद्ध को खत्म करने के लिए तैयार है। सूत्रों का कहना है कि इजरायल का यह कदम अमेरिकी दबाव और क्षेत्रीय अस्थिरता को कम करने की कोशिश के तहत उठाया गया है। इजरायली अधिकारियों ने यह भी संकेत दिया है कि अगर ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म कर दे, तो इजरायल अपनी सैन्य कार्रवाई रोक सकता है।

एक वरिष्ठ इजरायली अधिकारी ने The Times of Israel को बताया, "हमारा मकसद युद्ध को अनिश्चितकाल तक खींचना नहीं है। अगर ईरान परमाणु हथियारों की दौड़ से पीछे हटता है, तो हम भी अपने हमले रोकने को तैयार हैं। गेंद अब ईरान के पाले में है।"


ईरान की प्रतिक्रिया

हालांकि, ईरान ने इजरायल के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "यह युद्ध खत्म करने का समय नहीं है। इजरायल और उसके सहयोगी हमारे देश पर हमले कर रहे हैं, और हम इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे।" ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भी एक बयान में कहा कि उनका देश किसी भी दबाव में नहीं झुकेगा और इजरायल को उसकी "गलतियों" की सजा जरूर मिलेगी।

ईरानी मीडिया ने दावा किया कि उनके परमाणु केंद्रों को पहले ही सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया था, और अमेरिकी-इजरायली हमलों से कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने पुष्टि की है कि फोर्डो और नटांज साइट्स को भारी क्षति पहुंची है।


अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका

इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की भूमिका भी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उनके हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को "लगभग खत्म" कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह शांति चाहते हैं, लेकिन ईरान को परमाणु हथियार बनाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। दूसरी ओर, रूस और चीन ने अमेरिकी हमलों की निंदा की है और इसे क्षेत्रीय अस्थिरता का कारण बताया है।

भारत ने भी इस मामले में सतर्क रुख अपनाया है। ऑपरेशन सिंधु के तहत भारत ने ईरान और इजरायल से अपने 1,700 से ज्यादा नागरिकों को सुरक्षित निकाला है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह स्थिति पर करीबी नजर रखे हुए है और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।

विश्लेषकों का मानना है कि इजरायल का यह शांति संदेश एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसका मकसद अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपनी स्थिति को मजबूत करना है। दूसरी ओर, ईरान का सख्त रुख बताता है कि वह आसानी से पीछे नहीं हटेगा। मध्य पूर्व में पहले से ही कई मोर्चों पर तनाव है, और इस युद्ध के और भड़कने से तेल की कीमतों से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था तक सब कुछ प्रभावित हो सकता है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू होती है, तो युद्धविराम की संभावना बन सकती है। लेकिन अभी के हालात को देखते हुए यह रास्ता आसान नहीं लगता।