आज जब ईरान और इजरायल के बीच तनाव की खबरें सुर्खियों में हैं, सोशल मीडिया पर एक दूसरी चर्चा भी जोर पकड़ रही है। लोग उस दौर को याद कर रहे हैं जब ईरान को फारस के नाम से जाना जाता था। वह दौर, जब फारस की गलियां रंगीन थीं, जिंदगी आजादी से सांस लेती थी और औरतें बिना किसी डर के अपने सपनों को पंख देती थीं। लेकिन फिर एक क्रांति आई और सबकुछ बदल गया। आधुनिक और तरक्कीपसंद फारस, इस्लामिक गणतंत्र ईरान में तब्दील हो गया। आइए, उस दौर की एक झलक देखते हैं और जानते हैं कि कैसे एक देश की दिशा बदल गई।

सुनहरा दौर: फारस की रौनक

1960 और 70 के दशक में ईरान, जिसे तब फारस कहा जाता था, मध्य-पूर्व का एक चमकता सितारा था। शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन में देश आर्थिक और सामाजिक रूप से तेजी से आगे बढ़ रहा था। तेहरान की सड़कों पर आधुनिकता की चमक दिखती थी। कॉफी शॉप्स, सिनेमाघर और यूनिवर्सिटीज में युवा अपनी आजादी का जश्न मनाते थे। उस दौर की तस्वीरें आज भी इंटरनेट पर वायरल होती हैं, जहां लड़कियां स्कर्ट और जींस पहनकर कॉलेज जाती थीं, गहरे रंग की लिपस्टिक लगाकर दोस्तों के साथ हंसती-बोलती थीं।

महिलाओं को न सिर्फ पढ़ने-लिखने का हक था, बल्कि वे वोट डाल सकती थीं और चुनाव भी लड़ सकती थीं। 1963 में शुरू हुए शाह के 'व्हाइट रिवॉल्यूशन' ने औरतों को समाज में बराबरी का दर्जा देने की कोशिश की थी। यूनिवर्सिटीज में लड़कियों की तादाद बढ़ रही थी और वे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील बनकर देश की तरक्की में हिस्सा ले रही थीं। कला और संस्कृति भी फल-फूल रही थी। फारसी साहित्य, संगीत और सिनेमा दुनिया भर में अपनी पहचान बना रहे थे।


क्रांति की आंधी और बदलता ईरान

लेकिन यह सुनहरा दौर ज्यादा दिन नहीं चला। 1970 के दशक के अंत तक शाह के शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ने लगा। लोग शाह की नीतियों को पश्चिमी देशों की कठपुतली मानने लगे। आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार और सियासी दमन के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई। इस आंदोलन का नेतृत्व किया आयतोल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ने, जो उस समय फ्रांस में निर्वासित थे। 

1979 में इस्लामिक क्रांति ने शाह का तख्ता पलट दिया। शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा और खुमैनी की अगुवाई में ईरान इस्लामिक गणतंत्र बन गया। नए शासन ने देश के सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे को पूरी तरह बदल दिया। जहां पहले औरतें बिना हिजाब के घूम सकती थीं, वहां अब हिजाब अनिवार्य हो गया। स्कूल-कॉलेजों में सख्त नियम लागू किए गए। सिनेमाघरों और कॉफी शॉप्स की रौनक कम हो गई। महिलाओं के अधिकारों पर कई पाबंदियां लग गईं।


आज का ईरान: पुरानी यादें और नई जंग

आज का ईरान उस फारस से बहुत अलग है। इस्लामिक गणतंत्र के तहत देश ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है, जैसे विज्ञान, तकनीक और सैन्य शक्ति। लेकिन सामाजिक आजादी के मामले में कई लोग आज भी उस पुराने दौर को याद करते हैं। खासकर युवा पीढ़ी, जो सोशल मीडिया के जरिए दुनिया से जुड़ी है, बदलाव की मांग उठा रही है। 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों ने दिखाया कि ईरान का युवा वर्ग आजादी और बराबरी की लड़ाई लड़ने को तैयार है। 

ईरान और इजरायल के बीच मौजूदा तनाव ने इन चर्चाओं को और हवा दी है। सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि जब ईरान फारस था, तब वह दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलता था। लेकिन क्रांति के बाद वह एक अलग रास्ते पर चल पड़ा। कुछ लोग इसे इस्लामिक क्रांति की जीत मानते हैं, तो कुछ इसे एक सुनहरे दौर का अंत।


क्या फिर लौटेगा फारस का वह दौर?

यह सवाल आज हर ईरानी के मन में है। क्या ईरान फिर से वह फारस बन सकता है, जहां आजादी की फिजाएं थीं? जवाब आसान नहीं है। बदलाव की चाहत तो है, लेकिन रास्ता मुश्किल। ईरान की नई पीढ़ी भले ही पुराने दौर की तस्वीरें देखकर सपने बुन रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि देश की सियासत और समाज दोनों ही जटिल हो चुके हैं। 

फिलहाल, ईरान की सड़कों पर तनाव है, आसमान में जंग के बादल मंडरा रहे हैं और दिलों में एक सवाल- क्या वह सुनहरा फारस फिर कभी लौटेगा? समय ही इसका जवाब देगा।