भारतीय महिला आइस हॉकी टीम ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में आयोजित 2025 IIHF महिला एशिया कप में इतिहास रच दिया। इस टूर्नामेंट में भारत ने ‘कांस्य पदक' (Bronze Medal) जीतकर देश का नाम रोशन किया। यह भारतीय महिला आइस हॉकी का पहला अंतरराष्ट्रीय मेडल है, जो तब और खास हो जाता है, जब हम जानते हैं कि इस जीत के पीछे कितनी मुश्किलें थीं। सरकारी सुविधाओं और फंडिंग की कमी के बावजूद, लद्दाख की बर्फीली वादियों में मेहनत करने वाली इन बेटियों ने हार नहीं मानी। दूसरी तरफ, देश में खेलों के लिए होने वाला ज्यादातर खर्च क्रिकेट पर ही केंद्रित रहता है, जिसके चलते अन्य खेलों को वो समर्थन नहीं मिल पाता, जिसकी उन्हें जरूरत है।

UAE में रचा गया इतिहास

2025 IIHF महिला एशिया कप में पांच देशों की टीमें शामिल थीं। भारत ने कुल पांच मैच खेले और सात अंकों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। यह मेडल सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि उन खिलाड़ियों की मेहनत, जिद्द और जुनून की कहानी है, जिन्होंने सीमित संसाधनों में भी बड़ा मुकाम हासिल किया। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने न सिर्फ अपने खेल का लोहा मनवाया, बल्कि यह भी दिखाया कि अगर मौका मिले तो भारत की बेटियां किसी से कम नहीं।


लद्दाख की बर्फ से शुरू हुआ सफर

भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की ज्यादातर खिलाड़ी लद्दाख और हिमाचल प्रदेश की स्पिति वैली से आती हैं। ये वो इलाके हैं, जहां सर्दियों में तापमान माइनस 30 डिग्री तक चला जाता है। बर्फ से ढके मैदानों पर ये लड़कियां बचपन से हॉकी खेलती आई हैं, लेकिन उनके पास न तो अच्छे उपकरण थे, न ही ट्रेनिंग के लिए पक्की रिंक। कई बार पुरुष खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी जाती थी, और बचे हुए समय में ही लड़कियों को प्रैक्टिस का मौका मिलता था। फिर भी, इन खिलाड़ियों ने हिम्मत नहीं हारी।

टीम की एक खिलाड़ी, रिगजिन ने एक इंटरव्यू में बताया, “हमारे गांव में लोग कहते थे कि लड़कियों का हॉकी खेलना बेकार है। लेकिन हमने अपने सपने को नहीं छोड़ा। आज हमारा मेडल उन सभी को जवाब है, जो हम पर शक करते थे।” यह जज्बा ही है, जिसने इन लड़कियों को UAE के मंच तक पहुंचाया।


सरकारी सुविधाओं का अभाव

भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की इस जीत की कहानी तब और प्रेरणादायक हो जाती है, जब हम देखते हैं कि उन्हें कितनी कम मदद मिली। सरकारी स्तर पर न तो इनके लिए पर्याप्त फंडिंग थी, न ही ट्रेनिंग सुविधाएं। लद्दाख में एक छोटा-सा रिंक है, जो सर्दियों में ही इस्तेमाल हो पाता है। गर्मियों में खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाना पड़ता है। कोचिंग, उपकरण, और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए खर्च का इंतजाम करना भी इनके लिए आसान नहीं था।

इसके उलट, भारत में खेलों का ज्यादातर बजट क्रिकेट पर खर्च होता है। बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) दुनिया के सबसे अमीर खेल संगठनों में से एक है, और क्रिकेटरों को हर तरह की सुविधा मिलती है—विश्वस्तरीय स्टेडियम, कोचिंग, विदेशी दौरों के लिए फंडिंग, और मोटी सैलरी। लेकिन हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन जैसे खेलों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे ने हाल ही में बताया था कि उनके गांव में आज भी पीने के पानी की सुविधा नहीं है, और ओलंपिक के बाद सरकार ने उन्हें घर देने का जो वादा किया था, वो अभी तक पूरा नहीं हुआ।


क्रिकेट का दबदबा और अन्य खेलों की अनदेखी

भारत में क्रिकेट को एक धर्म की तरह पूजा जाता है। आईपीएल जैसे टूर्नामेंट्स में अरबों रुपये का निवेश होता है, और क्रिकेटरों को स्टार की तरह देखा जाता है। लेकिन हॉकी, जो भारत का राष्ट्रीय खेल है, उसे उतना महत्व नहीं मिलता। पुरुष हॉकी टीम ने 2021 और 2024 के ओलंपिक में कांस्य पदक जीते, जिसके बाद कुछ समय के लिए हॉकी चर्चा में आई। लेकिन महिला हॉकी को अभी भी वो सम्मान और समर्थन नहीं मिल रहा, जिसकी वो हकदार है।

खेल मंत्रालय का बजट हर साल बढ़ता है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा क्रिकेट इन्फ्रास्ट्रक्चर या बड़े इवेंट्स पर खर्च हो जाता है। दूसरी तरफ, ग्रामीण इलाकों में खेल सुविधाओं का अभाव है। छोटे शहरों और गांवों से आने वाली प्रतिभाएं, जैसे कि महिला आइस हॉकी टीम की खिलाड़ी, अपने दम पर संघर्ष करती हैं। अगर इन खिलाड़ियों को सही ट्रेनिंग, कोचिंग, और फंडिंग मिले, तो भारत और भी कई मेडल जीत सकता है।


देश को हो रहा गर्व

यह मेडल सिर्फ एक उपलब्धि नहीं, बल्कि उन लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं। भारतीय महिला आइस हॉकी टीम की बेटियों ने न सिर्फ मैदान पर, बल्कि जिंदगी के हर मोर्चे पर जीत हासिल की है। अब समय है कि हम सब मिलकर इनका हौसला बढ़ाएं और सरकार से मांग करें कि हर खेल को बराबर का मौका मिले। क्योंकि, जब भारत की बेटियां मैदान पर उतरती हैं, तो वो सिर्फ खेल नहीं खेलतीं, बल्कि देश का मान बढ़ाती हैं।