ईरान की संसद ने बुधवार, 25 जून 2025 को एक बड़ा और अहम फैसला लिया है। संसद ने संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था (IAEA) के साथ सभी तरह के सहयोग को तुरंत निलंबित करने वाला विधेयक भारी बहुमत से पास कर दिया। यह कदम इजरायल के साथ 12 दिनों तक चले तीखे सैन्य संघर्ष के बाद उठाया गया है, जिसमें ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया था। इस विधेयक के तहत ईरान अब अपनी परमाणु सुविधाओं पर निगरानी कैमरे लगाने, IAEA के निरीक्षकों को जांच की इजाजत देने और एजेंसी को कोई रिपोर्ट सौंपने से तब तक मना करेगा, जब तक उसकी परमाणु साइट्स की सुरक्षा की पूरी गारंटी नहीं मिल जाती।
क्यों लिया गया यह फैसला?
ईरान और इजरायल के बीच पिछले कुछ हफ्तों से तनाव चरम पर है। इजरायल ने ईरान के कई परमाणु ठिकानों, जैसे अराक, फोर्डो और नतांज पर हवाई हमले किए, जिनमें भारी नुकसान होने की खबरें हैं। इन हमलों में अमेरिका का भी साथ होने का दावा किया जा रहा है। ईरान का कहना है कि IAEA ने इन हमलों की निंदा नहीं की और न ही उसने ईरान की परमाणु साइट्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाया। इससे नाराज होकर ईरान ने यह कठोर कदम उठाया है।
संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के इब्राहिम रेजाई ने कहा, "जब तक IAEA हमारी परमाणु सुविधाओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता, हम किसी भी तरह की निगरानी या सहयोग के लिए तैयार नहीं हैं। हमारा परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, लेकिन हम अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेंगे।" संसद में इस विधेयक को 221 वोटों के समर्थन में और बिना किसी विरोध के पारित किया गया, जो ईरान के सख्त रुख को दर्शाता है।
क्या कहता है विधेयक?
इस विधेयक के मुताबिक, ईरान अब IAEA के साथ निम्नलिखित गतिविधियों को रोक देगा:
- परमाणु सुविधाओं पर निगरानी कैमरे लगाने की अनुमति।
- IAEA निरीक्षकों को साइट्स पर जांच के लिए आने की इजाजत।
- परमाणु गतिविधियों से जुड़ी कोई भी रिपोर्ट एजेंसी को सौंपना।
ईरान का दावा: हमारा परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण
ईरान ने हमेशा से दावा किया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों, जैसे बिजली उत्पादन और चिकित्सा अनुसंधान के लिए है। हालांकि, इजरायल और अमेरिका लंबे समय से ईरान पर परमाणु हथियार बनाने की कोशिश का आरोप लगाते रहे हैं। IAEA की हालिया रिपोर्ट्स में भी कहा गया था कि ईरान के पास 60% तक संवर्धित यूरेनियम का भंडार है, जो अगर और शुद्ध किया जाए तो परमाणु हथियार बनाने के लिए इस्तेमाल हो सकता है। हालांकि, IAEA प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने यह भी साफ किया कि उनके पास ईरान के पास सक्रिय परमाणु हथियार कार्यक्रम होने का कोई ठोस सबूत नहीं है।
संसद में गूंजे नारे
विधेयक पास होने के दौरान ईरान की संसद में माहौल गरम था। सांसदों ने "अमेरिका मुर्दाबाद" और "इजरायल मुर्दाबाद" के नारे लगाए। संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाकर कलीबाफ ने कहा, "IAEA ने हमारी साइट्स पर हुए हमलों की निंदा करने की बजाय चुप्पी साध ली। अब हम अपने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम को और तेजी से आगे बढ़ाएंगे।" उनके इस बयान से साफ है कि ईरान अब अपने परमाणु कार्यक्रम को और मजबूत करने की दिशा में कदम उठा सकता है।
इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हलचल मचा दी है। पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने चिंता जताई है कि इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी और क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरस ने तनाव कम करने की अपील की है। उन्होंने कहा, "यह समय संयम बरतने और बातचीत का है, न कि टकराव का।"
IAEA की बैठक में क्या हुआ
भारत ने भी इस मामले पर सतर्क रुख अपनाया है। वियना में IAEA बोर्ड की बैठक में भारत राजदूत शंभू कुमार ने कहा, "परमाणु साइट्स की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। ऐसे हमलों से पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।" भारत ने सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।
कई लोगों का मानना है कि ईरान का यह कदम मध्य-पूर्व में तनाव को और बढ़ा सकता है। अगर IAEA की निगरानी पूरी तरह बंद हो जाती है, तो ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सवाल और गहरा सकते हैं। कुछ जानकारों को यह भी डर है कि इजरायल और अमेरिका के हमलों से नाराज ईरान भविष्य में परमाणु हथियार बनाने की दिशा में कदम उठा सकता है, हालांकि ईरान ने अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है।
ईरान और IAEA के बीच रिश्ते पहले भी तनावपूर्ण रहे हैं। 2015 में हुए परमाणु समझौते (JCPOA) के बाद कुछ राहत मिली थी, लेकिन 2018 में अमेरिका के इस समझौते से हटने के बाद स्थिति फिर बिगड़ गई। अब इस नए विधेयक ने दोनों पक्षों के बीच खाई को और चौड़ा कर दिया है।
ईरान का IAEA के साथ सहयोग खत्म करने का फैसला न केवल उसके परमाणु कार्यक्रम, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व की स्थिरता के लिए अहम है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस कदम के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय और IAEA क्या रुख अपनाते हैं।