देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 20 जून 2025 को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) के बड़े अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करने जा रही हैं। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य Goods and Services Tax (जीएसटी) में कुछ बदलावों, जीएसटी दरों की समीक्षा, क्षतिपूर्ति सेस के भविष्य और जीएसटी संग्रह के मौजूदा रुझानों पर गहन विचार-विमर्श करना है। सूत्रों की मानें तो यह बैठक GST Council की अगली बैठक के लिए आधार तैयार करेगी, जिसमें कई अहम फैसले लिए जा सकते हैं। यह कदम न केवल कारोबारी समुदाय बल्कि आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि जीएसटी देश की आर्थिक प्रणाली का एक हिस्सा है।

जीएसटी:

 
जीएसटी को 1 जुलाई 2017 को भारत में लागू किया गया था, जिसे देश की आजादी के बाद सबसे बड़ा कर सुधार माना गया। इसका उद्देश्य विभिन्न अप्रत्यक्ष करों जैसे वैट, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी आदि को एकीकृत कर एक समान कर प्रणाली स्थापित करना था। जीएसटी ने ‘एक देश, एक कर’ के नारे को साकार करने का प्रयास किया, जिससे कारोबारियों को कई करों के जटिल ढांचे से राहत मिली और कर प्रणाली को पारदर्शी बनाने में मदद मिली।


20 जून की बैठक का महत्व

20 जून को होने वाली यह बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह पहली बार नहीं है जब वित्त मंत्री जीएसटी पर चर्चा के लिए सीबीआईसी अधिकारियों से मिल रही हैं, लेकिन इस बार की बैठक को इसलिए खास माना जा रहा है क्योंकि यह जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक से ठीक पहले हो रही है। इस बैठक में कई ऐसे मुद्दों पर विचार किया जाएगा जो कारोबारी समुदाय और आम जनता को सीधे प्रभावित करते हैं।


1. जीएसटी में बदलाव

जीएसटी दरें शुरू से ही चर्चा का केंद्र रही हैं। वर्तमान में जीएसटी की चार मुख्य दरें हैं—5%, 12%, 18% और 28%—इसके अलावा कुछ वस्तुओं पर 0% और लक्जरी वस्तुओं पर अतिरिक्त सेस लागू होता है। कई उद्योग संगठन और कारोबारी समूह लंबे समय से जीएसटी दरों को और तर्कसंगत बनाने की मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इस बैठक में कुछ जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की दरों को कम करने पर विचार हो सकता है, ताकि आम लोगों को राहत मिले।

2. क्षतिपूर्ति सेस का भविष्य

क्षतिपूर्ति सेस जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों को हुए राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए शुरू किया गया था। यह सेस तंबाकू, शराब, कोयला, लग्जरी कारों और कुछ अन्य वस्तुओं पर लगाया जाता है। शुरू में यह सेस पांच साल के लिए लागू किया गया था, जो 2022 में समाप्त हो गया। हालांकि, Covid-19 महामारी के कारण राज्यों की मांग पर इसे बढ़ाया गया।

3. जीएसटी संग्रह के रुझान

पिछले कुछ महीनों में जीएसटी संग्रह में लगातार बढ़ोतरी देखी गई है। अप्रैल और मई 2025 में जीएसटी कलेक्शन ने नया रिकॉर्ड बनाया, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है। यह दर्शाता है कि कारोबारी गतिविधियां बढ़ रही हैं और टैक्स अनुपालन में सुधार हो रहा है। इस बैठक में वित्त मंत्री और सीबीआईसी अधिकारी इस बात पर चर्चा करेंगे कि जीएसटी संग्रह को और कैसे बढ़ाया जा सकता है।
साथ ही, टैक्स चोरी रोकने और जीएसटी रिटर्न फाइलिंग को और आसान बनाने के उपायों पर भी विचार होगा। डिजिटल तकनीक और डेटा एनालिटिक्स के इस्तेमाल से टैक्स अनुपालन को और बेहतर करने की योजना बनाई जा सकती है।


जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक

20 जून की बैठक को जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक के लिए एक तरह का रोडमैप तैयार करने के रूप में देखा जा रहा है। जीएसटी काउंसिल में केंद्र सरकार और सभी राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होते हैं। यह काउंसिल जीएसटी से जुड़े सभी बड़े फैसले लेती है, जैसे दरों में बदलाव, नए नियम लागू करना और टैक्स छूट देना।

 पिछली कुछ बैठकों में काउंसिल ने छोटे कारोबारियों के लिए जीएसटी रिटर्न फाइलिंग को आसान बनाने, कुछ वस्तुओं पर टैक्स छूट देने और टैक्स स्लैब को तर्कसंगत बनाने पर जोर दिया था। इस बार की बैठक में भी इन मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है। साथ ही, कुछ नए सेक्टर जैसे ऑनलाइन गेमिंग, क्रिप्टोकरेंसी और रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने पर भी विचार हो सकता है।

कारोबारी समुदाय इस बैठक और जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक से काफी उम्मीदें लगाए बैठा है। छोटे और मझोले कारोबारी (MSME) लंबे समय से जीएसटी नियमों को और सरल बनाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जटिल रिटर्न फाइलिंग और उच्च टैक्स दरें उनके लिए चुनौती बनी हुई हैं।

 उद्योग संगठन जैसे फिक्की (FICCI) और सीआईआई (CII) ने सुझाव दिया है कि जीएसटी स्लैब को तीन स्तरों (जैसे 5%, 15% और 25%) तक सीमित किया जाए, ताकि कर प्रणाली और आसान हो। साथ ही, इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के नियमों में ढील देने और टैक्स रिफंड प्रक्रिया को तेज करने की मांग भी उठ रही है।


आम जनता पर असर

जीएसटी दरों में किसी भी बदलाव का सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। अगर कुछ जरूरी वस्तुओं की दरें कम होती हैं, तो इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। उदाहरण के लिए, अगर खाने-पीने की चीजों, दवाओं या बच्चों के सामान पर जीएसटी कम होता है, तो यह मध्यम वर्ग के लिए बड़ी बचत होगी।

 वहीं, अगर लक्जरी वस्तुओं पर सेस बढ़ता है, तो इसका असर उच्च आय वर्ग पर पड़ेगा। हालांकि, सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि जीएसटी बदलावों से सरकारी राजस्व पर असर न पड़े, क्योंकि यह राजस्व विकास योजनाओं और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए जरूरी है।