दिल्ली के निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी और नियमों के उल्लंघन के खिलाफ अभिभावकों का गुस्सा अब सड़कों पर दिखने लगा है। सोमवार को सैकड़ों अभिभावक दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से मिलने उनके आवास पर पहुंचे, लेकिन पुलिस ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया। इस घटना ने अभिभावकों के बीच और अधिक नाराजगी पैदा कर दी है। अभिभावकों का कहना है कि उनकी शिकायतों को सुनने के बजाय सरकार और प्रशासन उनकी आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है।


क्या है मामला?

पिछले कुछ महीनों से दिल्ली के कई निजी स्कूलों पर फीस में बेतहाशा वृद्धि और बच्चों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार के आरोप लग रहे हैं। अभिभावकों का कहना है कि स्कूल बिना किसी ठोस कारण के फीस में 20% से 100% तक की बढ़ोतरी कर रहे हैं। कई स्कूलों ने फीस न देने पर बच्चों को कक्षा से बाहर बैठाने, परीक्षा में शामिल न करने, या यहां तक कि स्कूल से नाम काटने की धमकी दी है। इन मुद्दों को लेकर अभिभावक लंबे समय से शिक्षा निदेशालय और दिल्ली सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

अप्रैल 2025 में दिल्ली सरकार ने "दिल्ली स्कूल एजुकेशन (ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस) बिल-2025" को मंजूरी दी थी, जिसका उद्देश्य निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाना था। इस बिल के तहत स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है, और नियम तोड़ने वाले स्कूलों पर जुर्माना या उनकी मान्यता रद्द करने की कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन अभिभावकों का आरोप है कि इस बिल के बावजूद स्कूल अपनी मनमानी जारी रखे हुए हैं, और सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।

सीएम आवास पर प्रदर्शन और पुलिस की कार्रवाई
सोमवार को दिल्ली के विभिन्न हिस्सों से आए अभिभावक मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से मिलकर अपनी शिकायतें रखना चाहते थे। इनमें डीपीएस द्वारका, महाराजा अग्रसेन मॉडल स्कूल (पीतमपुरा), और वनस्थली पब्लिक स्कूल (मयूर विहार) जैसे स्कूलों के अभिभावक शामिल थे। प्रदर्शनकारी अभिभावकों ने नारे लगाए, जैसे शिक्षा है अधिकार, नहीं व्यापार" और "फीस वृद्धि बंद करो, अभिभावक ATM नहीं हैं।


अभिभावकों की शिकायतें

अभिभावकों का कहना है कि स्कूल न केवल फीस बढ़ा रहे हैं, बल्कि अतिरिक्त शुल्क के नाम पर भी पैसे वसूल रहे हैं। उदाहरण के लिए, कुछ स्कूलों ने "हेल्थ एंड हाइजीन" या "सेफ्टी एंड सिक्योरिटी" जैसे शुल्क जोड़े, जो पहले डेवलपमेंट फीस में शामिल होते थे। इसके अलावा, कई स्कूल कोविड काल के बकाया फीस की मांग कर रहे हैं, जिसे अभिभावक गैरकानूनी मानते हैं।

एक अन्य अभिभावक, विनीत गुप्ता, ने बताया, "मेरे बच्चे के स्कूल ने इस साल फीस में 42% की बढ़ोतरी की है। जब हमने इसका विरोध किया, तो स्कूल ने मेरे बच्चे को क्लास में बैठने से मना कर दिया। क्या यह बच्चों के अधिकारों का हनन नहीं है?" अभिभावकों का यह भी आरोप है कि शिक्षा निदेशालय स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहा है।


सरकार ने क्या कहा

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पहले कहा था कि उनकी सरकार बच्चों और अभिभावकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। अप्रैल में एक जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान उन्होंने स्कूलों को चेतावनी दी थी कि नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने भी दावा किया कि 970 से अधिक स्कूलों का ऑडिट किया गया है, और 150 स्कूलों को नोटिस जारी किए गए हैं। लेकिन अभिभावकों का कहना है कि ये नोटिस केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं, और जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं दिख रहा।

लेकिन जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, अभिभावकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या दिल्ली सरकार स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगा पाएगी, या यह मुद्दा केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित रह जाएगा? फिलहाल, दिल्ली के अभिभावक अपनी लड़ाई जारी रखने को तैयार हैं, और उनकी मांग है कि शिक्षा को व्यापार नहीं, बल्कि हर बच्चे का अधिकार माना जाए।