अमेरिका ने शनिवार रात ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों- फोर्डो, नटांज और इस्फहान पर हवाई हमले किए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस हमले को "बेहद सफल" करार देते हुए दावा किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह तबाह कर दिया गया है। इस कार्रवाई ने मध्य पूर्व में पहले से चल रहे तनाव को और भड़का दिया है, और ईरान ने इसका जवाब देने की धमकी दी है।
ट्रम्प ने व्हाइट हाउस से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, "हमने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों पर हमला किया, जिसमें फोर्डो भी शामिल है, जो सबसे सुरक्षित माना जाता था। हमारे बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स ने बंकर भेदी बमों का इस्तेमाल किया।" उन्होंने ईरान को चेतावनी दी कि अगर वह शांति नहीं चाहता, तो भविष्य में और बड़े हमले हो सकते हैं। ट्रम्प ने यह भी कहा कि सभी अमेरिकी विमान सुरक्षित रूप से वापस लौट आए हैं।
ईरान की प्रतिक्रिया
ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी IRNA ने हमले की पुष्टि करते हुए कहा कि फोर्डो, नटांज और इस्फहान के परमाणु केंद्रों को निशाना बनाया गया। ईरान की परमाणु ऊर्जा संगठन ने इस हमले को "क्रूर और गैरकानूनी" बताया और कहा कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को कभी नहीं रोकेगा। संगठन के एक अधिकारी ने कहा, "हमारे वैज्ञानिक और इंजीनियर इस हमले के बावजूद काम जारी रखेंगे।"ईरान ने संयुक्त राष्ट्र में इस हमले की निंदा की और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई की मांग की। ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह हमला न केवल ईरान की संप्रभुता का उल्लंघन है, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी खतरा है। ईरान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने संकेत दिया कि देश जवाबी कार्रवाई की योजना बना रहा है, जिससे क्षेत्र में युद्ध का खतरा बढ़ गया है।
इजरायल की भूमिका
यह हमला इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष के बीच हुआ है। इजरायल ने पिछले कुछ हफ्तों से ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले तेज कर दिए थे। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के इस कदम की तारीफ की और कहा, "यह ऐतिहासिक है। अमेरिका ने वह किया जो कोई और नहीं कर सकता था।" सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका और इजरायल ने इस हमले की योजना पिछले साल एक सैन्य अभ्यास के दौरान बनाई थी।अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस हमले ने वैश्विक समुदाय को दो हिस्सों में बांट दिया है। अमेरिका के कुछ सहयोगी देशों, जैसे ऑस्ट्रेलिया, ने इस कार्रवाई का समर्थन किया है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा, "अमेरिका के पास और कोई विकल्प नहीं था।" वहीं, कई देशों ने इस हमले की निंदा की है। संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था IAEA ने इसे "बेहद चिंताजनक" बताया।अमेरिका में भी इस हमले को लेकर मतभेद हैं। डेमोक्रेटिक नेता हकीम जेफ्रीज ने ट्रम्प के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि बिना संसद की मंजूरी के यह हमला गैरकानूनी है और इससे युद्ध का खतरा बढ़ गया है।
क्षेत्रीय और दुनियां पर प्रभाव
विश्लेषकों का मानना है कि यह हमला मध्य पूर्व में एक बड़े युद्ध को जन्म दे सकता है। ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने पहले ही अमेरिका को धमकी दी है कि वे लाल सागर में अमेरिकी युद्धपोतों को निशाना बना सकते हैं। इसके अलावा, तेल की कीमतों में उछाल की आशंका जताई जा रही है, क्योंकि ईरान एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है।हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्यक्रम वाकई तबाह हो गया है, तो यह क्षेत्र में शांति की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। लेकिन वे यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि ईरान असममित हमलों, जैसे आतंकवादी गतिविधियों, के जरिए जवाब दे सकता है।
ट्रम्प ने ईरान से शांति वार्ता की अपील की है, लेकिन ईरान ने साफ कर दिया है कि जब तक इजरायल के हमले नहीं रुकते, वह कोई बातचीत नहीं करेगा। इस बीच, वैश्विक समुदाय इस तनाव को कम करने की कोशिश में जुटा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई है, जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा होगी।
यह हमला न केवल मध्य पूर्व, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। आने वाले दिन इस बात का फैसला करेंगे कि यह क्षेत्र शांति की ओर बढ़ता है या एक नए युद्ध की ओर।